Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट का प्रतिबंध और चुनाव पर प्रभाव,
Introduction
इलेक्टोरल बॉण्ड एक वित्तीय संसाधन होता है जिसे राजनीतिक दलों को धन- एकत्र करने के लिए 2017 में संसद में पेश किया गया था। यह योजना विवादग्रस्त योजना में से एक है। इस योजना के पक्ष में भी बहुत से लोग हैं और विपक्ष में भी बहुत से लोग हैं। इलेक्टोरल बांड के समर्थन में तर्क रखने वाले कहते हैं इससे चुनावी चंदे में पारदर्शिता आता है जबकि इसके विरोध करने वाली लोगों का तर्क है कि Electoral Bonds से राजनीति में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
Electoral Bonds कैसे काम करता है:
बैंक द्वारा जारी किए गए वाहक साधन इलेक्टोरल बॉण्ड होता है।
कोई भी व्यक्ति या कंपनी इन बॉण्डों को खरीद सकता है और अपने पसंदीदा राजनीतिक दलों को दान में दे सकता है।
दान करने वाले व्यक्ति का नाम गुप्त रखा जाता है।
केवल पंजीकृत राजनीतिक दल ही इन बॉण्ड को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं।
Supreme Court का प्रतिबंध:
15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने Electoral Bonds Schemes को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
प्रतिबंध के कारण:
अनुपातहीन प्रभाव पड़ना: बड़े दानकर्ताओं का राजनीतिक दलों पर अनुचित प्रभाव पड़ता है। यह लोकतंत्र के लिए और राजनीतिक पार्टियों के लिए ठीक नहीं होता है।
पारदर्शिता की कमी: दानकर्ताओं ने कितना पैसा दिया राजनीतिक पार्टियों कभी भी नहीं बताती हैं, और नाम को हमेशा गुप्त रखती हैं।
भ्रष्टाचार का खतरा: अनाम धन मिलने के कारण भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता जाता हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन: भारत की जनता की एक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती हैं। चुनावी चांदी के रूप में दिए जाने वाले धन लगातार अभिव्यक्ति की आजादी पर कोठारा घात प्रहार कर रहे थे।
इन्हीं इन्हीं तर्कों के आधार पर भारत की सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी चंदे Electoral Bonds को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
चुनाव पर प्रभाव:
छोटे दल चुनावी चंदा लेकर अपनी चुनावी कार्यक्रमों को संचालित किया करते थे इलेक्टोरल बॉण्ड असंवैधानिक घोषित होने के बाद छोटे राजनीतिक दल अपने चुनावी कार्यक्रम संचालित करने में पीछे रह सकते हैं। क्योंकि छोटे राजनीतिक दल बड़े राजनीतिक दलों की समान पैसे जुटाना में सक्षम नहीं हो पाते हैं।
चुनाव में धन का महत्व धीरे-धीरे बढ़ सकता है।
चुनावी सुधारों की आवश्यकता बढ़ सकती है प्रतिबंध के बाद।
वर्षों का प्रयोग:
2017: इलेक्टोरल बॉण्ड योजना शुरू की गई थी।
2018: चुनाव आयोग ने योजना की आलोचना किया।
2019: इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई।
2023: सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की।
2024: सुप्रीम कोर्ट Electoral Bonds को असंवैधानिक करार दिया।
समीक्षा: सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आने वाले समय में चुनावी पारदर्शिता के लिए एक मिसाल बन सकता है। यह देखना की इलेक्टोरल बांड के प्रतिबंध के बाद राजनीतिक दल कैसी अपनी चुनावी खर्च को मैनेज करते हैं रोचक होने वाला है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सराहनीय है, भारत की जनता को पता ही नहीं चलता था कि किस पार्टी को कौन कितना चंदा दिया।
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