D.EDऔर D.El.Ed में क्या अंतर होता है? DED को हाईकोर्ट ने D.El.Ed के समकक्ष क्यों नहीं माना
यदि आप शिक्षक बनना चाहते हैं, तो आपके लिए यह खबर जानना बेहद जरूरी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि डीएड (D.Ed) और डीएलएड (D.El.Ed) की डिग्रियां समकक्ष (Equivalent) नहीं हैं। यह फैसला न केवल शिक्षा जगत में चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि भविष्य की शिक्षक भर्तियों पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा।
फैसले की पृष्ठभूमि: क्या है पूरा मामला?
संघप्रिय गौतम नामक याचिकाकर्ता ने 2014 में मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से डीएड किया था और 2015 में शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) पास की थी। इसके आधार पर उन्हें जनवरी 2024 में सीतापुर जिले में सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्ति पत्र मिला। लेकिन उन्हें स्कूल आवंटित नहीं किया गया क्योंकि उनका डीएड प्रमाणपत्र डीएलएड के समकक्ष नहीं माना गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि डीएड और डीएलएड का पाठ्यक्रम समान नहीं है, इसलिए ये डिग्रियां एक-दूसरे की जगह नहीं ली जा सकतीं। कोर्ट ने कहा कि एनसीटीई (राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद) की अधिसूचना के अनुसार, कक्षा 1 से 5 तक के शिक्षकों की भर्ती के लिए डीएलएड अनिवार्य है।
डीएड और डीएलएड में क्या है अंतर?
डीएलएड (Diploma in Elementary Education)
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प्राथमिक शिक्षा (Class 1-5) पर केंद्रित
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पाठ्यक्रम में बाल विकास, बाल मनोविज्ञान, और प्राथमिक शिक्षण विधियों का समावेश
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एनसीटीई द्वारा प्राथमिक शिक्षक पद के लिए मान्य
डीएड (Diploma in Education)
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सामान्य शिक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रम
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पाठ्यक्रम अधिक सैद्धांतिक और व्यापक होता है
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प्राथमिक शिक्षक पद के लिए एनसीटीई द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं, जब तक विशेष रूप से अधिसूचित न हो
शिक्षक बनने की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए जरूरी सलाह
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सही डिप्लोमा चुनें – अगर आप कक्षा 1 से 5 तक पढ़ाना चाहते हैं तो डीएलएड ही करें, डीएड नहीं।
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एनसीटीई की गाइडलाइन पढ़ें – आपकी डिग्री तभी मान्य होगी जब वह एनसीटीई मान्यता प्राप्त हो।
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भ्रामक संस्थानों से बचें – कई बार गैर मान्यता प्राप्त संस्थान फर्जी डिप्लोमा बेचते हैं।
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टीईटी अनिवार्य है – डिप्लोमा के साथ-साथ शिक्षक पात्रता परीक्षा भी जरूरी होती है।
इस फैसले का भविष्य की भर्तियों पर प्रभाव
इस फैसले के बाद बेसिक शिक्षा विभाग और अन्य एजेंसियां अब केवल डीएलएड धारकों को ही प्राथमिक शिक्षक पद के लिए योग्य मानेंगी। इससे पहले जिन उम्मीदवारों ने डीएड के आधार पर आवेदन किया था, उनकी नियुक्तियां रद्द हो सकती हैं।
यह निर्णय भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और योग्यता आधारित चयन को सुनिश्चित करता है। इससे योग्य उम्मीदवारों को सही अवसर मिलेगा और शिक्षा की गुणवत्ता भी बेहतर होगी।
अब यह साफ हो चुका है कि डीएड और डीएलएड में अंतर सिर्फ नाम का नहीं है, बल्कि इनके पाठ्यक्रम, उद्देश्य और मान्यता में भी बड़ा फर्क है। यदि आप शिक्षक बनना चाहते हैं, तो सही कोर्स चुनना बेहद जरूरी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को एक चेतावनी के रूप में लें और भविष्य में एनसीटीई गाइडलाइन के अनुसार ही तैयारी करें।
Source: प्राइमरी का सास्टर
Nice
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